ग्रीन एनर्जी के नाम पर हो रही वृक्षों की कटाई: राजस्थान में फिर से लौटेगा मरुस्थलीकरण?

 



ग्रीन एनर्जी के नाम पर हो रही वृक्षों की कटाई: राजस्थान में फिर से लौटेगा मरुस्थलीकरण?



स्थान: छत्तरगढ़, बीकानेर | 18, अप्रैल 2025


थार की हरियाली खतरे में, हजारों पेड़ काटे जा चुके, वन्यजीव विस्थापन की स्थिति

ग्रीन एनर्जी के नाम पर हो रही वृक्षों की कटाई: राजस्थान में फिर से लौटेगा मरुस्थलीकरण?


राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय क्षेत्र, विशेष रूप से बीकानेर जिले के छत्तरगढ़ और आसपास के गांवों में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के नाम पर वृक्षों की अंधाधुंध कटाई का सिलसिला तेज़ी से जारी है। जहां एक ओर सरकार ग्रीन एनर्जी को भविष्य का ऊर्जा समाधान मानकर इन परियोजनाओं को बढ़ावा दे रही है, वहीं दूसरी ओर, मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को भारी क्षति पहुंच रही है।


हजारों पेड़ काटे, प्राकृतिक जल स्रोतों पर संकट

स्थानीय रिपोर्ट्स के अनुसार, अब तक हजारों खेजड़ी, केर, कुमठा और जाल जैसे पेड़ काटे जा चुके हैं, जो इस क्षेत्र के पारंपरिक मरुस्थलीय वन हैं। इन पेड़ों की कटाई के कारण:

  • वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास उजड़ रहे हैं
  • स्थानीय जल स्रोत नष्ट हो रहे हैं
  • धरती की नमी और जल संरक्षण क्षमता खत्म हो रही है

इसके साथ ही सौर परियोजनाओं के लिए जमीन को समतल करने के नाम पर खेतों की वनस्पति तक जलाई जा रही है।


बिश्नोई समाज ने जताया विरोध, पर्यावरणीय असंतुलन की चेतावनी

पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित बिश्नोई समाज ने इस कटाई का विरोध करते हुए इसे संत जाम्भोजी की शिक्षाओं के विरुद्ध बताया है। बिश्नोई समाज के प्रतिनिधियों का कहना है कि—

“हमने सदियों से इन वृक्षों की रक्षा की है, आज इन पर आरी चलाना हमारी संस्कृति और प्रकृति के साथ विश्वासघात है।”

बिश्नोई समाज का मानना है कि सौर ऊर्जा का उत्पादन बिना वृक्षों को नुकसान पहुंचाए भी किया जा सकता है, बशर्ते नीति-निर्माता और कंपनियां पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हों।


विशेषज्ञों की चेतावनी: यह विकास नहीं, भविष्य की त्रासदी है

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह प्रक्रिया जारी रही, तो आने वाले वर्षों में:

  • राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में तीव्र मरुस्थलीकरण होगा
  • मानव और पशु जीवन पर संकट मंडराएगा
  • और यह क्षेत्र एक बार फिर अकाल, गर्मी और पलायन का केंद्र बन जाएगा

क्या हैं समाधान?

  • सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए बंजर भूमि या छतों का उपयोग किया जाए
  • पेड़ काटने के बजाय प्राकृतिक भू-रूपों के साथ सह-अस्तित्व का मॉडल अपनाया जाए
  • स्थानीय समुदायों की भागीदारी के साथ निर्णय लिए जाएं
  • सौर ऊर्जा को सतत विकास के साथ जोड़ने के लिए सख्त नीतियां बनाई जाएं

निष्कर्ष: विकास की दौड़ में प्रकृति को कुर्बान न करें

हरित ऊर्जा भविष्य की ज़रूरत है, लेकिन हरियाली की कीमत पर नहीं। अगर आज हम नहीं चेते, तो कल सौर प्लेटों से भरी जमीन पर ना तो जीवन बचेगा, ना जल, और ना जंगल। सरकारें नियम बना सकती हैं, पर समाज ही संवेदना और जिम्मेदारी से पर्यावरण की रक्षा कर सकता है।


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