ठाठिया/ढूमला: हस्तकला का नायाब नमूना

 ठाठिया/ढूमला: हस्तकला का नायाब नमूना 

ठाठिया/ढूमला: हस्तकला का नायाब नमूना



ठाठिया ग्रामीण क्षेत्रों में प्रयोग में लिया जाने वाला बर्तन है। जिसे ढूमला भी कहा जाता है।  ये कागज को भीगोकर उसकी लुगदी से बनाए जाते हैं। इसका उपयोग पहले गांवो में विवाह और सामाजिक समारोहों में लड्डू, बूंदी को परोसने में किया जाता था। ठाठिये की जगह अब स्टील के बर्तनों का प्रयोग होने लगा है। 


 ठाठिया विभिन्न आकारों में उपलब्ध हैं, लेकिन आमतौर पर वे गोलाकार या अंडाकार होते हैं। इनका मुख चौड़ा और आधार संकरा होता है। इस पर एक ढक्कन भी बनाया जाता है।ठाठिया को अक्सर मांडने से सजाया जाता है, और उनमें पारंपरिक राजस्थानी पैटर्न और डिजाइन होते हैं।


ठाठिया का उपयोग राजस्थान में सदियों से किया जा रहा है। यह राजस्थानी संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ठाठिया का उपयोग केवल घरेलू उद्देश्यों के लिए ही नहीं, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों में भी किया जाता है।


ठाठिया बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है। कागज को पहले अच्छी तरह से गलाकर उसकी लुगदी तैयार की जाती है जिसे पेपरमेशी कहा जाता है। फिर उसे एक निश्चित आकार में ढाला जाता है। इसके बाद, ठाठिया को सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब ठाठिया सूख जाता है, तो उसे मांडने बनाकर सजाया जाता है। 


ठाठिया राजस्थान के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण वस्तु है। यह उनकी संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। ठाठिया का उपयोग न केवल घरेलू उद्देश्यों के लिए, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों में भी किया जाता है।


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