अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : महिला मुख्यमंत्रियों ने दिखाया था सियासी जलवा | बाल मुकुन्द ओझा

 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 : महिला मुख्यमंत्रियों ने दिखाया था सियासी जलवा

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022: महिला मुख्यमंत्रियों ने दिखाया था सियासी जलवा


बाल मुकुन्द ओझा, जयपुर।

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम देश की सियासत में सक्रीय महिला राजनेताओं विशेषकर आज़ादी के बाद विभिन्न प्रदेशों में मुख्यमंत्री के पद को सुशोभित करने वाली महिलाओं की जानकारी पाठकों से साझा करना चाहते है। देश में कुछ अर्से पहले एक साथ चार चार महिला मुख्यमंत्रियों की धमक थी। आज केवल एक मुख्यमंत्री पर देश सिमट कर रह गया है। देश के सियासत में हालाँकि महिलाओं की भागीदारी बेशक कम रही है, परंतु उनकी दमदार उपस्थिति से कोई इंकार नहीं कर सकता। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्ष की नेता और मुख्यमंत्री जैसे अहम् पदों पर रहकर महिला राजनीतिज्ञों ने अपनी काबीलियत की छाप छोड़ी। यह सच है की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं के लिए  संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाने के लिए लाया गया महिला आरक्षण विधेयक कुछ पार्टियों के अड़ियल और महिला विरोधी सोच के चलते सालों से लंबित पड़ा है। इसके बावजूद धरातलीय कठिनाइयों और परेशानियों के बावजूद महिलाएं राजनीति में न सिर्फ आगे आईं बल्कि उन्होंने राजनीतिक पार्टियों और सरकारों को नेतृत्व भी दिया। सोनिया गाँधी ने अनेक वर्षों तक कांग्रेस का नेतृत्व कर एक नया इतिहास रचा। देश की राजनीति में महिलाओं का दखल शुरू से रहा है। आजादी के बाद देश की सियासत में इंदिरा गाँधी सहित अनेक महिला नेताओं ने अपने साहस,  बुद्धि और राजनीतिक कौशल का परिचय दिया। इसके अलावा विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजनी नायडू , सोनिया गांधी, प्रतिभा पाटिल, मीरा कुमार, सुमित्रा महाजन की भूमिका दमदार रही है। इनमें इंदिरा गाँधी सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री के रूप में प्रसिद्ध हुई। 

देश में कुछ ही साल पहले चार चार महिला मुख्यमंत्रियों की धमक थी। आज यह आकंड़ा चार से सिमट कर एक पर आ गया है। राजस्थान में वसुंधरा राजे, जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती, गुजरात में आनंदीबेन पटेल और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ ही तमिलनाडु में जय ललिता का सियासी जलवा देखते ही बनता था। आज सियासत में महिला मुख्यमंत्री के रूप में केवल ममता दीदी की सशक्त भागीदारी हमारे सामने है। यहाँ हम उन महिला नेताओं की चर्चा कर रहे है जिन्होंने अपने अपने प्रदेश का मुख्यमंत्री के रूप में नेतृत्व किया और लोगों पर अपनी छाप छोड़ने में सफल हुई। देश में अब तक 16 महिलाएँ विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री पद पर रह चुकी हैं। श्रीमती सुचेता कृपलानी  को देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। वे कांग्रेस पार्टी की थीं जबकि उनके पति आचार्य जे.बी.कृपलानी प्रजा समाजवादी पार्टी के बड़े नेता थे। श्रीमती नंदिनी सत्पथी उड़ीसा की पहली मुख्यमंत्री थीं। शशिकला काकोडकर गोवा, जानकी रामचन्द्रन तमिलनाडू, सैय्यद अनवरा तैमूर असम, मायावती उत्तरप्रदेश, शीला दीक्षित दिल्ली, राबड़ी देवी बिहार, सुषमा स्वराज दिल्ली, आनंदी पटेल गुजरात, उमा भारती मध्यप्रदेश, राजिन्दर कौर भट्टल पंजाब, जय ललिता तमिलनाडु, वसुंधरा राजे राजस्थान ,महबूबा मुफ्ती जम्मू एंड कश्मीर के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो चुकी हैं। इनमें उत्तरप्रदेश और तमिलनाडू को छोड़कर सभी मुख्यमंत्री अपने-अपने प्रदेशों की पहली मुख्यमंत्री बनी थीं।

वर्तमान में ममता बनर्जी प बंगाल की मुख्यमंत्री है। तीन पूर्व महिला मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, महबूबा मुफ्ती और मायावती वर्तमान में पूरे दम खम के साथ राजनीति में डटी है। चारों अलग-अलग राजनीतिक दलों से सम्बद्ध हैं मगर उनकी पार्टी पर उनका जलवा बरकरार है । अपने सभी प्रकार के निर्णय खुद ही लेती हैं इसमें किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करतीं। चारों महिलाएँ अपने-अपने राज्यों में जन-जन में लोकप्रिय और धरातलीय नेता हैं।

महिला मुख्यमंत्रियों के इतर देश में अनेक महिला राजनीतिज्ञों ने मज़बूती से अपनी पेठ जमाई है। मोदी मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, स्मृति इरानी,अनुप्रिया पटेल महिलाओं का सशक्त प्रतिनिधित्व करती है। कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी वाड्रा  यूपी चुनाव में  लड़की हूं-लड़ सकती हूं का नारा गुंजाकार देशभर में अपना दमखम दिखाया।

बंगाल की मुख्यमंत्री  ममता बनर्जी वर्तमान में देश की सबसे मुखर नेत्री के रूप में  सक्रीय है। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने तीसरी बार पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनने के बाद विपक्षी एकता की कोशिश शुरू की है। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले वे बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों का मोर्चा बनाना चाहती हैं। बहरहाल वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्री ममता, माया, वसुंधरा, महबूबा का राजनीतिक जलवा अभी कई दशकों तक देश की राजनीति में देखने को मिलता रहेगा।


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