बीकानेर के प्रमुख मंदिर : मुक्ति धाम मुकाम, करणी माता मंदिर देशनोक, कपिल सरोवर, जसनाथ जी मंदिर कतरियासर

 नमस्कार साथियों! JhalkoBikaner.com पर आपका हार्दिक स्वागत है। आज की इस ब्लॉग पोस्ट में हम बीकानेर के प्रमुख मंदिरों के बारे में विस्तृत जानकारी साझा करेंगे। बीकानेर की सामाजिक, धार्मिक और ऐतिहासिक जानकारी की दृष्टि से यह पोस्ट महत्वपूर्ण है। इस पोस्ट को पूरा अवश्य पढ़ें।


प्राचीन काल में जांगल प्रदेश के नाम से जाना जाने वाला बीकानेर धार्मिक तीर्थाटन अधिक होने के कारण वर्तमान में छोटी काशी के नाम से जाना जाता है। बीकानेर में बिश्नोईयों का मुख्य धाम मुकाम, चुहों की देवी करणी माता का मंदिर देशनोक, सांख्य दर्शन के जनक कपिल मुनि का सरोवर श्री कोलायत, सिद्ध संप्रदाय का प्रमुख धाम कतरियासर और  भेरुजी मंदिर कोडमदेसर आदि प्रमुख मंदिर देवालय है। जहां दूर-दराज से लोग अपने आराध्य देवी-देवताओं के दर्शन करने के लिए आते हैं। इन मंदिरों में जाकर भक्तजन अपने आप को महसूस अच्छा करते हैं और विशेष कार्यों के सिद्ध होने की मनौती भी मांगते हैं। 

बीकानेर के प्रमुख मंदिर : मुक्ति धाम मुकाम, करणी माता मंदिर देशनोक, कपिल सरोवर, जसनाथ जी मंदिर कतरियासर



आइए जाने बीकानेर के इन मंदिरों के बारे में


मुक्ति धाम मुकाम : मुक्ति धाम मुकाम मंदिर बीकानेर जिले के नोखा तहसील में स्थित बिश्नोई समाज का आस्था का केंद्र है। अतः इस मंदिर के बारे में जानकारी लेने से पूर्व हमें बिश्नोई समाज के बारे में जानना आवश्यक है।

बिश्नोई समाज : बिश्नोई समाज की की स्थापना मध्य सदी के महान संत गुरु जांभोजी ने संवत् 1542 कार्तिक वदी अष्टमी को बीकानेर के समराथल नामक धोरे पर बैठकर पवित्र पाहल देकर उपस्थित जनवृंद को लोगों को बिश्नोई बनाया। गुरु जांभोजी ने बिश्नोई बनने वाले लोगों को 29 नियम की आचार संहिता बतलाई जिसका पालन करना प्रत्येक बिश्नोई के लिए अनिवार्य है। वर्तमान में बिश्नोई मुख्यतः राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं। गुरु जांभोजी की समाधि मुक्ति धाम मुकाम में स्थित है। मुक्ति धाम मुकाम बिश्नोईयों के हृदय से जुड़ा स्थल है।

मुक्ति धाम मुकाम की भौगोलिक स्थिति: 

 यह बीकानेर जिले के नोखा तहसील में स्थित है। जो नोखा से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर बिश्नोई समाज के प्रवर्तक गुरु जांभोजी की समाधि स्थित है। इसलिए बिश्नोई समाज में मुक्तिधाम मुकाम का सर्वाधिक महत्व है। 

मुक्ति धाम मुकाम पर प्रतिवर्ष मुख्य मेले भरते हैं। पहला महाशिवरात्रि के दूसरे दिन फाल्गुन की अमावस्या को व दूसरा अाश्विन की अमावस्या को भरता है। इन मेलों में देश के कोने-कोने से श्रद्धालुजन अपने श्रद्धेय गुरु जांभोजी के दर्शन करने आते हैं। 

गुरु जांभोजी की पर्यावरण संरक्षण शिक्षा का साकार रूप हमें मुक्ति धाम मुकाम में देखने को मिलता है। यहां इन मेलों के अवसर पर सैकड़ों मण गाय के घी से यज्ञ होता है व आने वाले श्रद्धालु जन चूग्गा (गेहूं, बाजरी) लेकर आते हैं जिससे यहां वर्ष भर पक्षियों, वन्यजीवों को चुग्गा डाला जाता है। मुक्ति धाम मुकाम से दूर तक फैले क्षेत्र में वृक्ष व वन्यजीवों की बहुलता को देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है। मुक्ति धाम मुकाम के पास है बिश्नोईयों का प्रवर्तन स्थल समराथल धोरा स्थित है।

समराथल धोरा जिसे बिश्नोईयों का आद्य भी कहा जाता है। मुक्ति धाम मुकाम जाने वाले प्रत्येक बिश्नोई सर्वप्रथम समराथल धोरा जाते हैं वहां संतो द्वारा बनाया गया पवित्र पाहळ ग्रहण करते हैं गुरु जांभोजी के दर्शन करते हैं तत्पश्चात मुक्ति धाम मुकाम जाते हैं।


करणी माता मंदिर देशनोक :

 करणी माता का मंदिर देशभर में प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। इस मंदिर में चरणों की कुलदेवी करणी माता की मूर्ति स्थापित है। यह बीकानेर से दक्षिणी दिशा में 30 किलोमीटर दूर देशनोक गांव में स्थित है। करणी माता को चूहों वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। इसीलिए इस मंदिर को चूहों की देवी का मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर में सफेद चूहों

(जिन्हें काबा कहा जाता है) के लिए प्रसिद्ध है। इस पवित्र मंदिर में लगभग 25000 चूहे रहते हैं। मंदिर में कड़ाह स्थित हैं जिन्हें सावन भादो के नाम से जाना जाता है।


करणी माता जगदंबा का अवतार है। कहते हैं वर्तमान में जहां मंदिर स्थित है वहां पर आज से लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व करणी माता एक गुफा में रहकर अपने इष्ट की पूजा अर्चना किया करती थी। यह गुफा आज भी यह मंदिर परिसर में स्थित है। बताया जाता है कि करणी माता के आशीर्वाद से ही जोधपुर व बीकानेर राज्य की स्थापना हुई थी।


दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं को मंदिर परिसर में यत्र-तत्र चूहों की धमाचौकड़ी देखने को मिलती है। चूहों की बहुतायत के कारण श्रद्धालु पैर घसीटते हुए करणी माता की मूर्ति तक पहुंचते हैं और दर्शन करते हैं। 

संपूर्ण मंदिर परिसर में चूहे ही चूहे देखने को मिलते हैं जो श्रद्धालुओं के शरीर पर कूदते फांदते रहते हैं। परंतु कभी किसी श्रद्धालु को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। मंदिर परिसर में सफेद चूहे भी पाए जाते हैं। जो किसी किसी श्रद्धालु को ही नजर आते हैं। कहते हैं जिस श्रद्धालु को सफेद चुहा नजर आता है तो वह शुभ शकुन माना जाता है। 


करणी माता मंदिर देशनोक में वर्ष भर में चित्र व अाश्विन के नवरात्रों में दो बड़े मेले लगते हैं। जिम में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। करणी माता से मनौतियां मांगते हैं और पूरी होने पर उन्हें आते हैं।

राजपूत शैली में निर्मित इस मंदिर का निर्माण महाराजा गंगा सिंह ने करवाया।


करणी माता मंदिर देशनोक आने के लिए बीकानेर से बहुतायत मात्रा में यातायात के साधन उपलब्ध है। बीकानेर से जोधपुर रेलवे मार्ग पर स्थित देशनोक रेलवे स्टेशन के पास ही यह मंदिर स्थित है। यहां श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के पास धर्मशालाएं बनी हुई है। बीकानेर आने वाले लोगों को एक बार करणी माता मंदिर देशनोक अवश्य जाना चाहिए।


कपिल मुनि सरोवर श्री कोलायत :

भारत के प्राचीन तीर्थाे में से एक भगवान विष्णु के पंचम अवतार कपिल मुनि की तपोस्थली एवं सांख्य दर्शन की उद्गम स्थल के पास स्थित तालाब/सरोवर को कपिल सरोवर के नाम से जाना जाता है।  

यह बीकानेर जिले की तहसील श्री कोलायत स्थित है। यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को बड़ा मेला लगता है जिसमें देश के कोने-कोने से लोग आते हैं और इस सरोवर में स्नान करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को यहां का दीप दान प्रसिद्ध है। 

पश्चिमी राजस्थान के लोग कपिल सरोवर को गंगा के तुल्य पवित्र मानते हैं। यहां लोग अपने अध्ययन करता पूर्वजों की अस्थियां विसर्जन कर पिंडदान व तर्पण करते हैं। 

कपिल मुनि सरोवर को शास्त्रों में भी यथेष्ट स्थान पर प्राप्त है, इसे गंगा पुष्कर प्रयागराज आदि के सदृश्य माना गया है।

यहां देश की आजादी से पूर्व रियासत द्वारा मेले का आयोजन करवाया जाता था। बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह द्वारा इस तीर्थ स्थल को रेलवे व सड़क मार्ग से जुड़वाकर श्रद्धालुओं के लिए तीर्थ यात्रा को सुगम बनाया गया।


कोलायत मेला: कपिल सरोवर पर अक्टूबर-नवंबर महीने की कार्तिक की पूर्णिमा को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इससे मेले में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं कपिल मुनि के भजन हुए कपिल सरोवर में डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि कपिल मुनि सरोवर में नहाने मात्र से मनुष्य के समस्त शारीरिक व मानसिक रोगों का नाश होता है। मेले के दौरान कपिल सरोवर के सभी 52 घाट को प्रशासन द्वारा सजाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को यहां प्रसिद्ध दीपदान महोत्सव मनाया जाता है। जो इस सरोवर की महिमा में सुंदरता के चार चांद लगा देते हैं। 


जसनाथ जी मंदिर कतरियासर: 

जसनाथ जी मंदिर कतरियासर: गुरु जसनाथ जी सिद्ध संप्रदाय के प्रवर्तक है।  जसनाथ जी मध्य सदी के महान संतों में से एक है। इन्होंने सिद्ध संप्रदाय की स्थापना की और सिद्ध संप्रदाय को अपनाने वाले लोगों को 36 नियम (आचार संहिता) बतलाए जिनका पालन करना प्रत्येक के सिद्ध के लिए अनिवार्य है। 

सिद्ध श्री जसनाथ जी मंदिर कतरियासर:

यह बीकानेर जिले के डूंगरगढ़ तहसील के कतरियासर गांव में स्थित है। सिद्ध संप्रदाय का यह मुख्य मंदिर है। सिद्धेश्वर श्री जसनाथ जी की याद में उनके तपोस्थली कतरियासर में विशाल मेले का आयोजन होता है। जिसमें सिद्ध समाज के लोग विश्व प्रसिद्ध अग्नि नृत्य करते हैं। 

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